वन अधिनियमो की उड़ाई जा रही धज्जियां, मनायी के बाद भी हो रही वन उपज का अभिवहन, विभाग मौन
कोटद्वार। लैंसडौन वन प्रभाग में वन क्षेत्राधिकारी कोटद्वार द्वारा कोटद्वार रेंज मैं सुखरो नदी व मालन नदी के तटवर्ती क्षेत्र के गांव की अतिवृष्टि अत्याधिक वर्षा होने से नदी के बहाव परिवर्तन करने हेतु जेसीबी मशीन से बहाव परिवर्तन/चैनेलाइजेशन के कार्य करने के संबंध में अनुमति प्रदान की गई है। जोकि वन क्षेत्राधिकारी के द्वारा सुखरो नदी में दो जगह और मालन नदी में तीन अलग-अलग जगह पर अनुमति दी गई है। जिसमें वन क्षेत्राधिकारी कोटद्वार के द्वारा अलग-अलग लोगों से निविदा/कोटेशन मांगी गई थी, कोटेशन के आधार पर नदी के बहाव परिवर्तन करने की अनुमति दी गई थी।

अनुमति में स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है कि तय समय के अंदर कार्य संपादित किया जाए अन्य किसी क्षेत्र में कार्य किए जाने पर भुगतान की कार्यवाही नहीं की जाएगी। कार्य सम्पादान के पश्चात नदी क्षेत्र में कोई गड्ढे इस प्रकार विद्यमान ना हो कि जिस में वर्षा काल के दौरान जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो, नदी के गड्ढों के धवास्तिकरण, समतलीकरण के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि नदी का बहाव परिवर्तन होकर नदी तट पर स्थित क्षेत्रों में जलभराव भूमि कटाव ना हो। कार्य सूर्योदय एवं सूर्यास्त के मध्य सम्पादित हो।
कार्य के दौरान किसी भी प्रकार की शिकायत प्राप्त होती है तो नियमानुसार दंडात्मक कार्यवाही अमल में लाई जाएगी, नदी क्षेत्र से मलवा/वन उपज का अभिवहन किसी भी रुप से निविदा दाता द्वारा नहीं किया जाएगा।

यदि इस प्रकार की गतिविधि पाई जाती है तो आप अपने स्तर से भारतीय वन अधिनियम की धाराओं का संज्ञान लेते हुए अपने स्तर से कार्यवाही कर अधोहस्ताक्षरी को अवगत कराने का कष्ट करें, अन्यथा आप स्वयं उत्तरदाई होंगे।

लेकिन इन शर्तों के बावजूद भी नदी से मालवा/ वन उपज का अभिवहन किया जा रहा है, जबकि इस सबंध में शिकायत प्रमुख वन संरक्षक (HOFF) उत्तराखंड राजीव भारती के पास भी 9 अगस्त को की गई, लेकिन प्रमुख वन संरक्षक के द्वारा भी कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई। इससे लगता है कि वन विभाग के अंदर भ्रष्टाचार किस कदर सर चढ़ रहा है इन बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है।